प्लेबैक सिंगर किशोर कुमार से संजय गांधी का पंगा

किशोर कुमार के गीत जब संजय गांधी के हुक्म के बाद आकाशवाणी पर नहीं बजते थे

 

किशोर कुमार के बारे में एक क़िस्सा मशहूर है कि वह खंडवा से बंबई अभिनेता बनने आए थे. उस समय उनके बड़े भाई अशोक कुमार बंबई फ़िल्म उद्योग के चोटी के अभिनेता थे।

 

एक बार वो अशोक कुमार के बॉम्बे टॉकीज़ वाले दफ़्तर गए. उस दफ़्तर के अहाते में वो सहगल का एक गाना गुनगुना रहे थे कि मशहूर संगीतकार खेमचंद प्रकाश ‘ज़िद्दी’ फ़िल्म की धुन पर काम करने के बाद थोड़ा आराम करने के लिए बाहर निकल आए।

 

जैसे ही उन्होंने किशोर को गुनगुनाते सुना उन्होंने उनसे अंदर आकर मिलने के लिए कहा. जब वो अंदर आए तो उन्होंने उनके सामने हारमोनियम रखा और वो गीत गाने के लिए कहा जो वो बाहर गा रहे थे।

 

थोड़ी देर सुनने के बाद उन्होंने किशोर को ऑफ़र किया कि क्या वो उनकी फ़िल्म ‘ज़िद्दी’ के लिए गाना गाएंगे?

 

किशोर इसके लिए तुरंत तैयार हो गए. जिस दिन रिकॉर्डिंग थी, खेमचंद ने अशोक कुमार और फ़िल्म के हीरो देवानंद को किशोर कुमार को सुनने के लिए बुलवा भेजा. पहले ही दिन किशोर का गाना ओके कर दिया गया. साल था 1948।

 

नौशाद और सी रामचंद्र से हुई चूक

लेकिन किशोर उन्हीं खेमचंद के असिस्टेंट रहे नौशाद से वो सम्मान नहीं प्राप्त कर सके.

 

किशोर कुमार के प्लेबैक करियर के पहले 27 सालों में नौशाद ने उन्हें एक बार भी अपने लिए गाने के लिए आमंत्रित नहीं किया, जबकि किशोर कुमार की दिली इच्छा थी कि वो नौशाद के लिए एक बार ज़रूर गाएं.

 

आख़िर में किशोर के सुपरसिंगिंग स्टार बन जाने के पूरे पाँच साल बाद 1974 में नौशाद ने फ़िल्म ‘सुनहरा संसार’ में किशोर कुमार से एक गाना गवाया, वो भी आशा भोसले के साथ एक डुएट.

 

उसी तरह मशहूर संगीतकार सी रामचंद्र ने भी अपनी फ़िल्म ‘साजन’ में किशोर कुमार को गवाने से ये कहते हुए इनकार कर दिया था कि मैं ऐसे शख़्स पर अपना समय क्यों बरबाद करूँ जिसे फ़िल्म संगीत और गाने के बारे में कुछ भी पता नहीं है.

 

लेकिन नौशाद और सी रामचंद्र के ठीक विपरीत सचिन देव बर्मन ने किशोर की प्रतिभा को 1952 में ही पहचान लिया था.

 

बॉम्बे टाकीज़ के दफ़्तर में यूँ ही गाना गा रहे किशोर कुमार के बारे में अपने बेटे पंचम को बताते हुए उन्होंने कहा था, “ये दादामुनि का छोटा भाई आभास है. थोड़ा सनकी है, लेकिन इसमें बहुत प्रतिभा है. आने वाले दिनों में तुम इसके बारे में बहुत कुछ सुनोगे।”

 

◆किशोर का प्ले बैक हेमंत कुमार ने दिया

 

किशोर को बंबई फ़िल्म उद्योग में अपने पैर जमाने के लिए ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा. साल 1954 में बिमल रॉय ने किशोर कुमार को फ़िल्म ‘नौकरी’ में बतौर अभिनेता साइन किया. किशोर मान कर चल रहे थे कि फ़िल्म के गाने भी वही गाएंगे.

 

लेकिन वो ये जानकर दंग रह गए कि संगीतकार सलिल चौधरी ने उनके गाने गाने के लिए हेमंत कुमार को आमंत्रित कर डाला.

 

मशहूर पत्रकार राजू भारतन अपनी किताब ‘अ जर्नी डाउन मेलडी लेन’ में लिखते हैं, “जैसे ही किशोर को इसके बारे में पता चला वो सलिल के म्यूज़िक रूम में गए और उनसे पूछा कि उन्हें अपनी ही फ़िल्म में क्यों नहीं गाने दिया जा रहा है?”

 

“सलिल का जवाब था, ‘मैंने तुम्हें पहले कभी गाते हुए नहीं सुना.’ परेशान किशोर ने कहा, ‘सलिल दा कम से कम अब तो आप मुझे गाते हुए सुन लीजिए.’ जैसे ही किशोर ने गाना शुरू किया, सलिल चौधरी ने उन्हें रोकते हुए कहा, ‘तुम्हें संगीत की एबीसी भी नहीं आती. तुम जा सकते हो. हेमंत कुमार तुम्हारे लिए गाना गाएंगे.’ परेशान किशोर कुमार फ़िल्म के प्रोड्यूसर बिमल रॉय के पास अपना केस ले कर गए।”

 

“उन्होंने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा, ‘संगीत सलिल चौधरी का डिपार्टमेंट है. मेरा संगीत निर्देशक तय करता है कि गाना कौन गाएगा.’ किशोर फिर अपने दो रिकॉर्ड लेकर सलिल चौधरी के पास गए लेकिन उन्होंने उनकी एक न सुनी और आख़िर में किशोर कुमार को हेमंत कुमार ने ही अपनी आवाज़ दी।”

 

सलिल चौधरी और मन्ना डे हुए किशोर कुमार के मुरीद

17 साल बाद 1971 में उन्हीं सलिल चौधरी ने गुलज़ार की फ़िल्म ‘मेरे अपने’ में किशोर कुमार से वो मशहूर गाना ‘कोई होता जिसको अपना हम कह लेते यारों’ गवाया.

 

बाद में सलिल ने खुद स्वीकार किया, “मैं खेमचंद को इस लड़के की चमक पहचानने के लिए सैल्यूट करता हूँ. मैं मानता हूँ कि हम सभी से किशोर की प्रतिभा पहचानने में गलती हुई थी.”

 

किशोर कुमार ने शास्त्रीय गायन की कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली.

 

लेकिन इसके बावजूद हिंदी सिनेमा में शास्त्रीय गायन के दिग्गज और साल 2005 में पद्म भूषण और साल 2007 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित मन्ना डे ने अपनी आत्मकथा ‘मेमरीज़ कम अलाइव: एन ऑटोबायोग्राफ़ी’ में स्वीकार किया था, “मुझे शास्त्रीय संगीत न जानने वाले किशोर कुमार के साथ गाने में घबराहट महसूस होती थी।”

 

“उनके गाने का एक ख़ास अंदाज़ था जो शास्त्रीय संगीत की बारीकियों पर भी भारी पड़ता था और युगल गाने में उनके साथ गा रहे साथी गायक को असुविधा में डाल देता था. जब मैंने फ़िल्म ‘अमीर ग़रीब’ में उनके साथ ‘मेरे प्याले में शराब डाल दे’ गाया तो मैंने इस बात को साफ़ साफ़ महसूस किया।”

 

देवानंद और राजेश खन्ना की आवाज़ बने किशोर कुमार

देवानंद ने शुरू में ही अपने लिए किशोर कुमार की आवाज़ को चुना. वो अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ़’ में लिखते हैं, “जब भी मुझे ज़रूरत होती कि किशोर मेरे लिए गाएं, वो रिकॉर्डिंग स्टूडियो में माइक्रोफ़ोन के सामने देवानंद का रोल निभाने के लिए तैयार रहते.”

 

“वो मुझसे हमेशा पूछते कि मैं इस गाने को स्क्रीन पर किस तरह गाऊंगा? फिर वो उसी के अनुसार अपने को ढाल कर गाना रिकॉर्ड करवाते. मैं उनसे हमेशा कहता कि आप इसको जितना लहक कर गा सकें, गाइए. मैं आपके गाने के मिज़ाज से अपने अभिनय को ढाल लूँगा.”

 

साल 1969 में ‘आराधना’ फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद किशोर राजेश खन्ना की भी आवाज़ बन गए।

 

किशोर कुमार की जीवनी लिखने वाले शशिकांत किनिकर लिखते हैं, “किशोर ने ‘आराधना’ के निर्माता निर्देशक शक्ति सामंत से कहा कि वो गानों की रिकॉर्डिंग से पहले राजेश खन्ना से मिलना चाहेंगे।”

 

“जब वो राजेश खन्ना से मिले तो उन्होंने उनकी एक-एक भावभंगिमा का अध्ययन किया ताकि उनके चरित्र को गानों के ज़रिए हूबहू उतारा जा सके।”

 

“बाद में राजेश खन्ना ने माना कि इन गानों की शूटिंग के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि ये गाने किशोर कुमार नहीं बल्कि वो खुद गा रहे हों. इस फ़िल्म में गाए उनके दो गानों ‘मेरे सपनों की रानी’ और ‘रूप तेरा मस्ताना’ ने राजेश खन्ना और किशोर कुमार दोनों को नैशनल ‘रेज’ बना दिया।”

 

●सचिनदेव बर्मन और किशोर कुमार की ट्यूनिंग

किशोर कुमार के गायन को सबसे अधिक निखारा सचिनदेव बर्मन के संगीत निर्देशन ने. उनके बेटे आरडी बर्मन ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था, “दादा रिकॉर्डिंग से तीन दिन पहले किशोर को अपनी धुन स्पूल टेप में भिजवा देते थे.”

 

“वह अपने स्टडी रूम में इन धुनों पर रियाज़ करते थे. किसी को भी उनके कमरे में जाने की अनुमति नहीं थी और रियाज़ के समय उनका कमरा अंदर से लॉक रहता था. किशोर उस धुन पर अभ्यास कर रिकॉर्डिंग स्टूडियो में घुसते थे.”

 

एक बार एसडी बर्मन को याद करते हुए किशोर कुमार ने भी कहा था, “एसडी बर्मन की एक अजीब आदत थी वो अपने गायकों को फ़ोन करते थे और उनकी आवाज़ सुन कर बिना बात किए फ़ोन रख देते थे.”

 

“ये उनका अपने गायक की गले की हालत परखने का अपना अंदाज़ हुआ करता था. एक दिन देर रात उन्होंने मुझे फ़ोन कर ‘कोरा काग़ज़ था ये मन मेरा’ की धुन सुनाई. हम दोनों जल्दी सो जाया करते थे और सुबह तड़के उठते थे।”

 

“उस दिन दादा ने मेरी आवाज़ सुनकर फ़ोन रखा नहीं बल्कि मुझे वो गाना गाने के लिए कहा. मुझे ज़ोरों की नींद आ रही थी. उन्हें गाना सुनाते समय भी मैं जम्हाइयाँ भर रहा था. लेकिन पूरी तरह संतुष्ट हो जाने के बाद ही उन्होंने मुझे दोबारा सोने की इजाज़त दे दी।”

 

किशोर कुमार की हरकतों से परेशान होती थीं लता मंगेशकर

एक बार लता मंगेशकर से पूछा गया था कि आपको किसके साथ डुएट गाने में सबसे अधिक मज़ा आया तो उन्होंने किशोर कुमार का नाम लिया था. लेकिन उन्होंने ये भी स्वीकार किया कि उन्हें किशोर के साथ डुएट गाने में बहुत दिक्कत भी होती थी.

 

लता का कहना था कि “गाते समय उनके संगीत और गायन को लेकर कोई समस्या नहीं होती थी, मगर जिस तरह वो हँसाते हँसाते पेट में दर्द करा देते थे, उसको सँभालना मुश्किल होता था. आप कितना भी सीरियस क्यों न हों, जब आप अंतरों में तान ले रहे हों या हरकत दिखा रहे हों, किशोर दा कोई ऐसा बेवकूफ़ी भरा इशारा करते थे, जिससे आपका ध्यान गाने से हट जाए.”

 

“कई बार हम लोग गाने को बीच में रुकवा कर उनसे मिन्नतें करते थे कि दादा पहले शांति से गाना रिकॉर्ड करवा दो, फिर ये सब कर लेना. दिलचस्प बात ये थी कि वो कितना भी उछलकूद और हँसोड़ हरकतें क्यों न कर रहे हों, खुद उन सब से बाहर रह कर गंभीर मुद्रा में गाते थे.”

 

अदृश्य लड़के से बातचीत

फ़िल्म गायन से जुड़े हर व्यक्ति के पास किशोर कुमार से जुड़े अनेकों क़िस्से हैं. आशा भोंसले बताती हैं, “किशोर दा अक्सर एक ऐसे लड़के के साथ रिकॉर्डिंग करवाने आते थे जो दिखाई नहीं देता था.”

 

“वो उससे लगातार बातें करते, चुटकले सुनाते और ज़ोर का ठहाका लगाते. कभी-कभी वो मुझे भी उन दोनों की बातचीत में शामिल होने का न्योता देते. मुझे ये थोड़ा अजीब ज़रूर लगता लेकिन हम लोगों का ज़बरदस्त मनोरंजन हुआ करता.”

 

इसी तरह की एक कहानी आरडी बर्मन सुनाया करते, “मैंने किशोर कुमार को बॉम्बे टॉकीज़ के दफ़्तर में देखा ज़रूर था लेकिन उनसे पहली बार 1952 में मिला. एक दिन मेरे पिता मुझे कारदार स्टूडियो ले गए जहाँ उनके गाने की रिकॉर्डिंग चल रही थी.”

 

“जब हम मेन गेट में घुसे तो मैंने देखा कि कुर्ता पायजामा पहने और गले में मफ़लर डाले एक शख़्स बाउंड्री वॉल पर बैठा हुआ है. मेरे पिता ने मुझसे कहा कि ये शख़्स मुझे बहुत तंग करता है. ये कहते हुए वो स्टूडियो के अंदर चले गए.”

 

“मैं किशोर कुमार के पास रुक गया और उनसे पूछा कि आप यहाँ क्या कर रहे हैं? उनका तुरंत जवाब था, ‘मैं कारदार साहब की नकल कर रहा हूँ.’ जब मैंने उनका नाम पूछा तो उन्होंने ज़ोरों से अपना पैर हिलाते हुए दवाब दिया, ‘किशोर कुमार खंडवावाला.’ इस बीच उनका एक जूता नीचे गिर गया।”

 

“मैंने वो जूता उन्हें उठा कर दे दिया. मैंने उनसे पूछा कहीं आप अशोक कुमार के भाई तो नहीं हैं, उनका जवाब था- हाँ और इसीलिए मुझे कोई काम नहीं देता. फिर वो अशोक कुमार और मेरे पिता की नकल करने लगे. उन्हें देख कर हँसते हँसते मेरे पेट में बल पड़ गए।”

 

‘बढ़िया खा ले करारे गजक’

किशोर कुमार के जीवनीकार डेरेक बोस अपनी किताब ‘किशोर कुमार मेथड इन मैडनेस’ में उनसे जुड़े कुछ और क़िस्से सुनाते हैं.

 

“वो अपने गार्डेन में पेड़ों से बाते किया करते थे. उन्होंने उनको बाकायदा नाम दे रखे थे जनार्दन, रघुनंदन, बुद्धू राम, गंगाधर वगैरह वगैरह. उन्होंने अपने घर के पिछवाड़े झूले लगवा रखे थे और वो उनमें बच्चों की तरह झूला करते थे।

 

अमित खन्ना ने एक बार रविवार की दोपहर किशोर कुमार को बैट्री से चलने वाले खिलौनों के बीच बैठे हुए देखा, जिन्हें उन्होंने एक साथ स्विच ऑन कर रखा था. जब भी वो अपने किसी नज़दीकी से मिलते थे तो उनका पहला वाक्य होता था, ‘बढ़िया खाले करारे गजक’, चाहे इसका जो भी मतलब कोई निकाले।”

 

●’कुत्ता बन कर’ ओपी रल्हन का हाथ काटा

ओपी रल्हन भी एक क़िस्सा सुनाया करते थे कि किस तरह साल 1959 में ‘शरारत’ की शूटिंग के दौरान किशोर कुमार ने उन्हें क़रीब-क़रीब पागल ही कर दिया था.

 

“एक दिन किशोर सेट पर शूटिंग के लिए नहीं पहुंचे. परेशान हो मैंने उनके घर जाकर उनको अपने साथ लाने का फ़ैसला किया. जब मैं उनके घर पहुंचा तो वो वहाँ मौजूद तो थे लेकिन उन्होंने कुत्तों की तरह अपने गले में एक पट्टा बाँध रखा था.”

 

“उनके सामने एक प्लेट रखी हुई थी जिसमें एक चपाती रखी हुई थी. उसके बगल में पानी का एक कटोरा भी था. वहीं एक बोर्ड भी रखा हुआ था जिसपर लिखा था ‘कुत्ते को डिस्टर्ब मत करो.’ जब मैंने उनसे शूटिंग पर चलने के लिए कहा तो वो कुत्ते की तरह गुर्राने लगे.”

 

“जब मैंने जिस तरह कुत्ते के सिर पर हाथ रखते हैं, उनके सिर पर भी हाथ रखने की कोशिश की तो उन्होंने मेरे हाथ में काट खाया. फिर वो कुत्ते की तरह तब तक भौंकते रहे जब तक उन्होंने मुझे गेट से बाहर नहीं कर दिया।”

 

किशोर के दोस्तों और नज़दीकी लोगों का कहना था कि वो इस तरह का व्यवहार उन लोगों के साथ करते थे जिनसे वो मिलना नहीं चाहते थे, ख़ासतौर से उन लोगों से जो उनके पैसे उन्हें नहीं दे रहे थे।

 

●सत्यजीत राय को दिए थे 5000 रुपये

किशोर कुमार के बारे में मशहूर था कि वो अपने पैसों को बहुत सँभाल कर रखते थे.

 

लेकिन गीतकार समीर बताते हैं कि “उन्होंने उनके पिता अंजान के लिए बिना कोई पैसा लिए कम से कम 10 गीत गाए थे. मुझे याद है कई बार उन्होंने मेरे पिता को अपनी कार से घर छोड़ा था, जब हमारे पास कार खरीदने के पैसे नहीं होते थे।”

 

“जब उन्होंने ‘चलती का नाम गाड़ी बनाई’ थी तो उन्होंने मेरे पिता से उसके गीत लिखने के लिए कहा था और मार्केट रेट से कहीं ज़्यादा पैसे उन्हें दिए थे।”

 

मशहूर फ़िल्म निर्देशक सत्यजीत राय जब ‘पथेर पांचाली’ बना रहे थे तो किशोर कुमार ने उन्हें 5000 रुपये देकर उनकी मदद की थी. उन्होंने राय की फ़िल्म ‘चारुलता’ के लिए भी दो गीत गाए थे और उसके लिए कोई पारिश्रमिक नहीं लिया था।

 

किशोर कुमार के गानों पर प्रतिबंध

साल 1975 में इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी ने बंबई के मशहूर फ़िल्मकारों को म्यूज़िकल नाइट में भाग लेने के लिए दिल्ली आमंत्रित किया था.

 

कई आमंत्रित लोग दिल्ली गए थे लेकिन किशोर कुमार ने न सिर्फ़ इस आमंत्रण को ठुकरा दिया था बल्कि ये स्पष्टीकरण भी नहीं दिया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया था।

 

शशिकांत किनिकर किशोर कुमार की जीवनी में लिखते हैं, “संजय गांधी ने इसे अपना निजी अपमान माना था और सूचना और प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल को बुला कर कहा था कि किशोर के गाने किसी भी सरकारी संचार माध्यम में नहीं बजाए जाएं।”

 

“नतीजा ये हुआ कि ऑल इंडिया रेडियो पर किशोर कुमार के गाने बजने बंद हो गए. इसके अलावा जिन फ़िल्मों में किशोर कुमार ने गाने गाए थे, उन्हें सेंसर ने सर्टिफ़िकेट देने से इनकार कर दिया।”

मुंबई अभिनेता टीनू आनंद को अवार्ड प्राप्त

रिपोर्टर उमाकांत शर्मा

यह घोषणा करते हुए खुशी हुई:
Tinnu Anand को राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (RIFF) 2024 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा

टिन्नू आनंद अमिताभ बच्चन अभिनीत “कालिया”, “शहेनशाह”, “मैं आज़ाद हूँ” जैसी फिल्मों के जाने-माने फिल्म निर्देशक हैं

राष्ट्रीय: 12 जनवरी 2024: आरआईएफएफ फिल्म क्लब द्वारा आयोजित और फेडरेशन ऑफ फिल्म सोसायटी ऑफ इंडिया (उत्तर क्षेत्र) द्वारा मान्यता प्राप्त राजस्थान अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आरआईएफएफ) का 10वां संस्करण 27 से 31 जनवरी 2024 तक जेम सिनेमा, एमआई रोड, जयपुर में आयोजित किया जाएगा। विषय “युवा और फिल्म विरासत”

राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (आरआईएफएफ) के फाउंडर सोमेंद्र हर्ष ने बताया कि इस साल राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (आरआईएफएफ) लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड जाने माने अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, लेखक टिन्नू आनंद को दिया जाएगा। लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड हर साल RIFF में फिल्मी दुनिया की एक ऐसी शख्सियत को दिया जाता है जिसने अपना पूरा जीवन सिनेमा को समर्पित कर दिया है।

टिन्नू आनंद भारतीय सिनेमा में एक जाना माना नाम है। एक बेहतरीन अभिनेता होने के अलावा टिन्नू आनंद एक बेहतरीन निर्देशक और लेखक भी हैं और काफी लंबे समय से सिने जगत में शामिल हैं। टिन्नू आनंद 1988 में फिल्म ‘शहेनशाह’ लाए थे, जिसमें अमिताभ बच्चन मुख्य भूमिका में थे। इस फिल्म के बाद अमिताभ बच्चन को इंडस्ट्री का ‘शहेनशाह’ कहा गया था। टिन्नू आनंद का जन्म 1945 में बॉम्बे में हिंदी सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक इंद्र राज आनंद के परिवार में हुआ था। टिन्नू आनंद ने अपनी स्कूलिंग मेयो स्कूल अजमेर राजस्थान से की।

टिन्नू आनंद ने पांच साल तक सत्यजीत राय के सहायक निर्देशक के रूप में बंगाली सिनेमा में फिल्म निर्माण की कला सीखी। एक सहायक निर्देशक के रूप में, टीनु आनंद ने बंगाली फिल्मों में काम किया जिसमें गुपी ग्यने बाघा बाईने (1969), अरणियर दिनरात्री (1970), द एडवर्सरी (1970), सीमाबद्द 1971) से लेकर अशानी संकेत (1973) तक शामिल हैं। फिल्म जलाल आगा में टिन्नू आनंद को अभिनय करने का पहला मौका मिला। इस फिल्म में सारिका, नसीरुद्दीन शाह और अमोल पालेकर मुख्य भूमिका में थे, टिन्नू आनंद के किरदार को बहुत पसंद किया गया और आलोचकों ने भी इसकी काफी सराहना की। एक अभिनेता के रूप में, टिन्नू ने अपने करियर में कई फिल्में की, जिसमें पुष्पक, अग्निपथ, खिलाड़ी, चमतकर, दिलजले, कभी ना कभी, साथ रंग के सपने, गजनी, अगली और पगली, दे दाना दान, दबंग, मसून, दामिनी, अंजाम और कई फिल्में शामिल थीं।

हाल ही में टिन्नू आनंद ने सीता रामम, सालार और मेरी क्रिसमस जैसी फिल्मों में काम किया है।

पिछले साल यह सम्मान जयपुर की मशहूर लेखिका हसरत जयपुरी को 2015 में मरणोपरांत दिया गया था, मशहूर गायक व संगीत निर्देशक बप्पी लाहिड़ी 2016 में राजस्थान की मशहूर अभिनेत्री व गायिका इला अरुण 2017 में, मशहूर अभिनेता ओम पुरी 2018 में, फिल्म निर्माता कमल कुमार बरजात्य साल 2019 में, मशहूर फिल्म निर्देशक और संपादक राहुल रावैल, साल 2020 में मशहूर संगीत निर्देशक दिलीप सेन, साल 2021 में मशहूर फिल्म निर्देशक और लेखक एन चंद्रा और साल 2022 में मशहूर अभिनेता परिक्षित साहनी।

आरआईएफएफ फिल्म क्लब के मैनेजिंग ट्रस्टी और राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के फाउंडर्स सोमेंद्र हर्ष और अंशु हर्ष ने कहा, “इस साल राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (आरआईएफएफ) का 10वां संस्करण “युवा और फिल्म हेरिटेज” थीम के साथ आयोजित किया जाएगा और 27 से फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया जाएगा 31 जनवरी तक जेम सिनेमा, एमआई रोड, जयपुर में, जहां फिल्म स्क्रीनिंग के अलावा ओपन फोरम, वर्कशॉप और टॉक शो भी आयोजित किए जाएंगे। RIFF अवार्ड नाइट 2024 का भव्य आयोजन 31 जनवरी 2024 को द जेम सिनेमा एमआई रोड जयपुर में होगा।

Adipurush: कृति को देखते ही फोटोग्राफर बोला,’जय श्री राम’, एक्ट्रेस ने सुनते ही दिखाई आंख, फिर सुधारी उसकी गलती ₹59.19

मुंंबई. प्रभास, कृति सैनन, सनी सिंह और सैफ अली खान स्टारर ‘आदिपुरुष’ (Adipurush Trailer) का ट्रेलर लॉन्च हो चुका है. फिल्म के ट्रेलर को खूब पसंद किया जा रहा है. ऑडियंस से इसकी सराहना कर रही है. प्रभास और कृति ने ट्रेलर लॉन्च इवेंट पर ऑडियंस के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. प्रभास ने प्रीमियर पर सफेद कुर्ता और पयजामा चुना जबकि कृति (Kriti As Sita) ने अपने सीता वाले लुक की तरह साड़ी कैरी करते हुए नजर आईं. उन्होंने बालों को बन किया हुआ था और उस पर गजरा लगाया था. कृति काफी सुंदर दिख रही थीं. ट्रेलर लॉन्च इवेंट से उनका एक वीडियो भी सामने आया है.

‘हजार- 2 हजार वाले कपड़े भी बनवा दो…’ आर्यन के महंगे ब्रांड पर फैंस का तंज, शाहरुख खान ने किया रिएक्ट ₹36.42

नई दिल्ली. बॉलीवुड का किंग खान यानी शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान इन दिनों अपने लक्जरी क्लोदिंग ब्रांड D’YAVOL X को लेकर सुर्खियों में हैं, जो अपने दाम को लेकर सुर्खियों में हैं. आर्यन के क्लोदिंग ब्रांड शुरू किया, जिसकी कीमत जानकर सभी के होश उड़ गए. अब शाहरुख खान ने बेटे के महंगे क्लोदिंग ब्रांड पर सोशल मीडिया पर एक फैन ने तंज कसा तो किंग खान ने इस पर ऐसे रिएक्ट किया, जिसके बाद लोगों को अब लग रहा है कि ‘पठान’ अब कुछ तो करके ही मानेगा.

शाहरुख खान समय-समय पर अपने चाहने वालों के साथ सोशल-मीडिया पर बातचीत करते रहते हैं. हाल ही में उन्होंने फैंस के साथ हैशटैग आस्क एसआरके सेशन रखा, जिसमें उनके चाहने वालों ने आर्यन खान के लक्जरी क्लोदिंग ब्रांड D’YAVOL X की कीमतों को कम करने की गुजारिश की, जिसपर शाहरुख ने रिएक्ट किया.

वसुधैव कुटुंबकम निबंध में चित्र के साथ छात्र-छात्राओं ने दिया अपनी भावनाओं को आकार

आगरा/बाह। आगरा में होने वाली जी-20 समिट की जागरुकता के लिए शुक्रवार को एक साथ स्कूल कॉलेजों में वसुधैव कुटुंबकम विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। बासौनी के रामसहाय वर्मा इंटर कॉलेज में मोनल सक्सेना के नेतृत्व में छात्राओं ने निबंध में चित्र के साथ ‌अपनी भावनाओं को आकार दिया। बाह के भदावर पीजी कॉलेज में प्राचार्य डॉ सुकेश यादव, आशाराम रामनिवास आदर्श इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य विनोद दीक्षित, हरप्रसाद राजाराम आदर्श इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य अनिल गुप्ता, भदरौली के एमआर महाविद्यालय निदेशक बीके शर्मा, जैतपुर के सिद्धांतराज कॉलेज में निदेशक राजबहादुर शर्मा, जरार के आछेलाल रामनरायन आदर्श इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य उमेश सिसोदिया के अलावा परिषदीय विद्यालयों में निबंध और जी-20 समिट को लेकर छात्र-छात्राएं बेहद उत्साहित दिखे।

आखिर क्यों ख़ास हैं 5 सितम्बर जाने खबर मे

आज विश्व का वो दिन है जिसका नाम सुनते ही बच्चे से लेकर 100 वर्षीय मानव के दिमाग ,आंखें, मन ,पेट मचलने ने लगता हैं और जीभ में स्वाद अपने आप आ जाता है ।जी हां हम एक ऐसे खाद्य पदार्थ की बात कर रहे हैं जो हर गली नुक्कड़ मौहल्ले और बड़े बड़े होटलों में विश्वव्यापी सर्व किया जाता है।अक्षय कुमार और जूही चावला की फिल्म मिस्टर खिलाड़ी का गाना आपको याद होगा जब तक रहेगा समोसे में आलू मैं तेरा रहूंगा सालू ।
जी हाँ आज हम बात कर रहे हैं विश्व समोसा दिवस की जो कि हर साल 5 सितंबर को पूरे विश्व में अनेक प्रकार से बनाया जाता है ।तमाम लोग समोसा पार्टी देते हैं ,नई-नई बनाने के तरीके की वीडियो बनाकर लॉन्च करते हैं। समोसा बनाने वाले उस्ताद अपने ऑनर का प्रयोग करते हैं नए-नए आकार नए तरीके की फीलिंग छोटे समोसे से लेकर बड़े-बड़े समोसे तक का प्रयोग किया जाता है ।दोस्तों में तो समोसा पार्टी करके अपनी दोस्ती को न केवल प्रगाढ़ किया जाता है बल्कि कॉलेज के दिनों को भी याद करते हैं ।
दुनिया में जितनी लंबी यात्रा समोसे ने की, उतनी शायद ही किसी और व्यंजन ने की हो. जिस तरह इसने खुद को तरह-तरह के स्वाद से जोड़ा, वो भी शायद किसी और डिश के साथ हुआ हो. इसे कई नामों से जाना जाता है. कई सदी पहले की किताबों और दस्तावेजों में इसका जिक्र संबोस्का, संबूसा, संबोसाज के तौर पर हुआ. अब भी इसके कई तरह के नाम हैं, मसलन-सिंघाड़ा, संबसा, चमुका, संबूसाज और न जाने क्या क्या।